एक कम्पैशनेट भविष्य का सिलबस: मोनाल जयराम
पिरामल फाउंडेशन के स्कूल ऑफ एजुकेशन एंड सिस्टम चेंज (सओईसीस) की फाउंडर और डायरेक्टर मोनाल जयराम (Monal Jayaram) के साथ एक ख़ास बातचीत में हम इन अंतर को कम करने के लिए, ओईइससी द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण का पता लगाएंगे ताकि एक परिवर्तनकारी परिणाम प्राप्त किए जा सके।
स्कूलों में शैक्षणिक प्रदर्शन और शिक्षा प्रणाली हमेशा से किसी एक व्यक्ति की इंटेलेक्चुअल और प्रोफेशनल पोटेंशियल का मुख्य आधार रही है। यह समझा जाता है कि उच्च अंक बेहतर अवसरों की ओर ले जाते हैं, जो एक सुरक्षित भविष्य का मार्ग पक्का करता है।
हालांकि, पिछले 10 साल में यह स्पष्ट हो गया है कि उच्च अंक के साथ स्कूलों से पासआउट होने और विभिन्न क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से "सुरक्षित" जॉब्स प्राप्त करने के बाद भी बच्चे तनाव से निपटने, सहानुभूतिपूर्ण सहकर्मी बातचीत, आत्म-सहानुभूति, सैल्फ कम्पैशन और रैसिलिएंस जैसे महत्वपूर्ण पेशेवर कौशल के साथ संघर्ष करते नज़र आ रहे हैं।
वैश्विक स्तर पर इस खोज ने शिक्षा के परिदृश्य को फिर से परिभाषित करने पर एक चर्चा को जन्म दिया है। छात्रों को सीखने में कठिनाई क्यों आ रही है? क्या यह चिंता है या भविष्य के बारे में अनिश्चितता का अहसास? या कुछ और?
पिरामल फाउंडेशन के स्कूल ऑफ एजुकेशन एंड सिस्टम चेंज (सओईसीस) की फाउंडर और डायरेक्टर मोनाल जयराम के साथ एक ख़ास बातचीत में हम इन अंतर को कम करने के लिए, ओईइससी द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण का पता लगाएंगे ताकि एक परिवर्तनकारी परिणाम प्राप्त किए जा सके।
प्रशन I: आज के समय में आपको बच्चों की शिक्षा को प्रभावित करने वाली कौन सी चुनौतियां नज़र आती हैं?
उत्तर I: स्कूल ऑफ एजुकेशन एंड सिस्टम चेंज एट पीरामल स्कूल ऑफ लीडरशिप में हमारे काम को तीन प्रशन संचालित करते हैं। पहला, पूरे देश में गहन प्रयास प्रयासों के बाद भी बच्चे पढ़ लिख क्यों नहीं पा रहे? दूसरा, सिर्फ पढ़ाई लिखाई पर ध्यान देने से क्या बच्चे भविष्य के लिए तैयार होंगे? और तीसरा, हम स्कूल प्रणाली में कैसे परिवर्तन ला सकते हैं? ये समझने के लिए कि 21वीं सदी की शिक्षा को 20वीं सदी की सोच, व्यवहार और प्रणालियों के माध्यम से कैसे वितरित किया जा सकता है? पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इसका जिक्र अपने एक भाषण में किया था।
छात्र क्यों नहीं सीख पा रहे हैं, इस पर हम पिछले 15 सालों में 8 परिकल्पनाओं के साथ काम कर चुके हैं और हमने समझा है कि ये उनके कठिन पारिवारिक और सामाजिक परिवेश से प्रभावित है। बच्चों पर हिंसा, दुर्व्यवहार, आघात और उपेक्षा का प्रभाव पड़ता है, जो प्रतिकूल बचपन के अनुभव (एसीई) कहलाता है। अनुसंधान से पता चलता है कि एसीई से प्रभावित बच्चों का मस्तिष्क कार्यक्षमता कम होती है, जो आगे सीखने में समस्या पैदा करता है।
इसके अलावा सामाजिक भेदभाव जो धर्म, जाति और लिंग पर आधारित है। बाल श्रम और बाल विवाह कुरीतियाँ अभी भी भारत में हो रहीं हैं। लगभाग 4.35 मिलियन बच्चे जो 5 से 14 साल के बीच के हैं आज भी बाल श्रम में फसें हैं (जनगणना 2011)। इंडिया में लगभाग 5 में से 1 जवान लड़की की 18 साल से पहली ही शादी कर दी जाती है, जो अक्सर स्कूल छोड़ने का कारण होता है।
जैसे जैसे हम विकसित भारत की ओर बढ़ रहे हैं, हमें समझना होगा कि मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (एफएलएन) काफी नहीं है - हमें सचेत रूप से 21वीं सदी के निर्माण की दिशा में योग्यता अनुसार बदलाव करना होगा। सोचिए एक स्कूल प्रणाली जो छात्रों को उद्यमशीलता की मानसिकता विकसित करने में मदद करती है, जहां हमारी एजेंसी और समस्या-समाधान कौशल को बढ़ावा देती है ताकि कल वो अपने लिए नौकरियां पैदा कर सकें।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब हम एक कम्पैशनेट भविष्य की तरफ बढ़ रहे हैं, तो हमें छात्रों में आत्मनिर्भरता, सहनशीलता और करुणा विकसित करनी होगी।
प्रशन II: क्या एसओईएससी का इन अन्तरालों को दूर करने और शिक्षा के परिदृश्य को बदलने में दृष्टिकोण अनूठा है?
उत्तर II: पिरामल स्कूल ऑफ लीडरशिप में, हमारी शिक्षा प्रणाली तीन लेवल में परिवर्तन-सोच स्थापित करती है। पहला, 21वीं सदी की शिक्षा, जो अनलॉक करती है बच्चों में आत्मनिर्भरता और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करना। दूसरा, नेतृत्व, विकास और व्यक्तिगत परिवर्तन, जो अनलॉक करता है सरकारी प्रणाली के मध्य प्रबंधकों में आत्मनिर्भरता; और तीसरा, सरकारी संस्थानों का संगठनात्मक विकास ताकि संस्थागत संस्कृति को करुणा और सेवा भाव के साथ बदला जा सके।
हमने सात संभावित समाधान विकसित किए हैं - सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक शिक्षा (एसईई लर्निंग), परियोजना-आधारित शिक्षा, सौंदर्यबोध, शारीरिक साक्षरता, स्कूल से कार्य तक, संवेदनशीलता युक्त लिंग परिवर्तन शिक्षा और डिजिटल साक्षरता। हमारे समाधान सरकारी प्रणाली में एकीकृत किए गए हैं ताकि स्थायी प्रभाव पैदा किया जा सके। यह सब आकलन सुधार, छात्रवृत्ति सुधार, राज्य शैक्षिक प्रबंधन और प्रशिक्षण संस्थान (एसआईईएमएटी), राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) और जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान (डीआईईटी) में सुधार जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से अभियांत्रिकी और शासन सुधार के साथ होता है।
पिछले 15 वर्षों में, हमारे हस्तक्षेप से मध्य प्रबंधकों और शिक्षकों के व्यवहार में परिवर्तन आया है और 21वीं सदी की दक्षताओं में सुधार के परिणाम प्राप्त हुए है, जैसे कि आलोचनात्मक सोच, करुणा और जीवन भर सीखना।
एसईई लर्निंग जैसे समाधानों ने छात्रों के 21वीं सदी के दक्षता स्कोर में 11% से अधिक सुधार दिखा है, और परियोजना-आधारित शिक्षा जैसे समाधानों ने मध्य और माध्यमिक स्कूलों के छात्रों की भाषा, गणित और विज्ञान के प्रदर्शन में 20% से अधिक सुधार दिखा है।
हमारे दृष्टिकोण ने हमें 8 राज्यों के 91 जिलों में काम करने का अवसर दिया है। हम 200 से अधिक राज्य संस्थानों, 1.6 लाख स्कूलों, 12.5 हजार मध्य प्रबंधकों और 6.5 लाख शिक्षकों के साथ सहयोग करते हैं ताकि लगभग 1.2 करोड़ बच्चों की सेवा कर सकें।
प्रशन III. आपको क्यों लगता है कि भारत, खासकर राजस्थान में, क्या आज सीखना जरूरी है?
उत्तर III: दुनिया जिसमें हम रहते हैं वो ज्यादा गतिशील होती जा रही है। लगातार विकसित हो रहे प्रौद्योगिकी परिदृश्य, आसन्न जलवायु संकट, और नौकरी बाजार की आवश्यकताओं के परिणामस्वरूप बदलाव के कारण किशोरों को जीवन कौशल के साथ सुसज्जित करना जरूरी हो गया है जो शैक्षणिक पाठ्यक्रम से परे है। आज के विद्यार्थियों में अलग-अलग स्तर पर परिवर्तन होना जरूरी है। हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी बच्चों के समग्र विकास के लिए सीखने के महत्व को उजागर करती है।
विशेष रूप से राजस्थान के मामले में, हमने शिक्षा अधिकारियों से बात की है जिन्होंने स्वयं यह स्वीकार किया है कि बाल श्रम और बाल विवाह अभी भी सबसे अच्छे प्रयासों के बावजूद भी मौजूद हैं। केंद्र और राज्य के अधिकारियों ने भी आत्महत्या के बढ़ते मामलों और संबंधित मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं के साथ-साथ किशोरों में सामाजिक-भावनात्मक कल्याण के बारे में गहरी चिंता साझा की। मुझे लगता है इससे एसईई लर्निंग जैसे कुछ क्रांतिकारी चीज़ की जरूरत और भी ज्यादा स्पष्ट होती है।
प्रशन IV: जब से एसओईएससी, पीएसएल राजस्थान में कार्य शुरू किया है तब से यथास्थिति बदली है?
उत्तर IV: अलग-अलग संकेतक दिखाते हैं कि राजस्थान में हमारा काम परिवर्तनकारी रहा है। अगर नंबर्स देखेंगे तो 2019 में सिर्फ एक जिले (झुंझुनू) में संचालन शुरू कर आज हम राजस्थान के 33 जिलों में काम कर रहे हैं।
कुछ दिल को छू लेने वाली परिवर्तन की कहानियाँ भी हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान के ‘चिड़ाव’ की जो एक 14 वर्षीय लड़की की कहानी है। उसकी भावनात्मक संघर्ष इतनी अधिक था कि वो अपनी भावनाओं को व्यक्त न कर पाने के कारण उसका गुस्सा अलगाव में परिवर्तन हो गया। फिर, हमारे एसईई लर्निंग के हस्तक्षेप के माध्यम से, जिसे हमने राजस्थान सरकार के साथ मिलकर किया था, उस लड़की को ग्राउंडिंग अभ्यास से परिचित कराया गया। आज, उसने अपनी भावनाओं को पहचानना और प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करने के उपकरण प्राप्त कर लिए है।
ये सिर्फ छात्रों तक सीमित नहीं है - बाल्की शिक्षक, सरकारी अधिकारी, और फाउंडेशन के कर्मचारी भी जो पहले भावनात्मक दबाव से जूझ रहे थे, आज बदल गए हैं। ये परिवर्तन हम वरिष्ठ स्तर तक राज्य शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में भी देख सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (आरएससीईआरटी) के उप निदेशक, श्री कमलेंद्र सिंह राणावत, अपने दैनिक कार्यों से काफी दबाव महसूस कर रहे थे। आज राज्य में एसईई लर्निंग प्रोग्राम के ट्रेनर हैं और अपने सहकर्मियों को भावनात्मक लचीलापन कैसे कैसे विकसित करें, यह सिखा रहे हैं।
प्रशन V: अब यहां से आगे का रास्ता क्या है?
उत्तर V: मैं आत्मविश्वास से कह सकती हूँ कि एसईई लर्निंग का भविष्य अब और भी अधिक आशाजनक है। शिक्षकों, नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं, गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) और समुदायों के बीच निरंतर सहयोग के माध्यम से, हम आज एक बेहतर स्थिति में हैं और समग्र शिक्षण वातावरण बनाने के लिए तैयार हैं। मुझे लगता है कि यह पहचानना आवश्यक है कि सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक शिक्षा को शैक्षिक अभ्यास में एकीकृत करना जिम्मेदार, सहानुभूतिपूर्ण और लचीले व्यक्तियों को विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है।